जीते-जी मरने का अर्थ है : जो मर कर होगा, उसे तुम एक घंटा रोज हो जाने दो। कुछ दिन के निरंतर अभ्यास के बाद धीरे-धीरे, धीरे धीरे यह अवस्था सधने लगेगी। एक घंटा तुम मुर्दे की भांति पड़े रहोगे। धीरे-धीरे तुम पाओगे, श्वास धीमी होती जाती है। जैसे जैसे सधेगी यह कला, श्वास धीमी हो जाएगी। क्योंकि जीने वाले के लिए श्वास की जरूरत है; जो मर गया उसके लिए श्वास की क्या जरूरत है? और एक दिन ऐसी घड़ी आएगी कि तुम अचानक पाओगे, श्वास बंद है; श्वास चल ही नहीं रही है, शरीर बिलकुल मुर्दा पड़ा है। और उसी क्षण तुम्हें पहली दफा बोध होगा अपने पृथक होने का। उसी क्षण-- ’जम ते उलटि भए हैं राम’--उसी क्षण मृत्यु विलीन हो जाती है; राम प्रकट हो जाते हैं; अमृत का अनुभव हो जाता है। फिर तुम तेईस घंटे जीते रहोगे, लेकिन रहोगे मुर्दे की भांति। तुम उठोगे, काम करोगे, सब करोगे; लेकिन तुम जानोगे कि यह शरीर तो मरणधर्मा है, मरा हुआ ही है।ओशो